गज़ल
2122 1222
दर्द की इक इबारत लिख
है मुहब्बत तिज़ारत लिख ।
कोई रहता नहीं दिल में
ढह गयी है इमारत लिख ।
थी इनायत कभी नजरें
अब है इनमें हिकारत लिख ।
जो हैं कानून के रक्षक
कब हैं करते हिफाज़त लिख ।
खामुशी मेरी खलती है
वो हैं करते शिकायत लिख ।
अब अजय मान ले तू भी
खतरे में है शराफत लिख ।
-अजय प्रसाद