गज़ल
अहसास के फलक पर, चाहत की बदलियाँ हैं,
दिल के चमन में उड़ती, खुशियों की तितलियाँ हैं।
अच्छे दिनों का देखो क्या खूब है नज़ारा,
बस भूख से तड़पती बेहाल बस्तियाँ हैं।
आती भला ख़ुशी भी कैसे हमारे घर फिर,
दिल के मकां पे लटकी, बस गम की तख्तियाँ हैं।
माँ की दवाई हो या, भाई की हो पढ़ाई,
चूल्हे में रोज जलती, अस्मत की लकड़ियाँ हैं।
माजी की याद कोई , अब तक जवां है दिल में,
तकिये के नीचे अब भी, कुछ ज़र्द चिट्ठियाँ हैं।
ये दिल की है अदालत, कब जाने फैसला हो,
फाइल में अटकी अब तक, चाहत की अर्जियां हैं।
हैं संग भी लहद के, देखो यहाँ पिघलते,
इक जलजला उठाती, ये किसकी हिचकियाँ हैं।
बादल का कोई टुकड़ा, आता नही ‘शिखा’क्यों
मुद्दत से खोल रक्खी , इस दिल की खिड़कियाँ हैं।
दीपशिखा सागर-