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27 Jul 2020 · 1 min read

गज़ल

हम कभी कामयाब शायद न हों
ज़र्रे से आफताब शायद न हों ।

तोहमत मेरी मुफलिसी पे तू रख
बेवफ़ा वो जनाब, शायद न हों ।

जब है मेरा वजूद कुछ भी नहीं
मेरे खातिर खिताब शायद न हों ।

रोज़ नज़रे मेरी दुआ ये करे
आज रुख पर हिजाब शायद न हों ।

खुश न होना जो पास वो आए गर
उनके हाथों गुलाब शायद न हों ।
-अजय प्रसाद

6 Likes · 4 Comments · 221 Views
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