गज़ल
हम कभी कामयाब शायद न हों
ज़र्रे से आफताब शायद न हों ।
तोहमत मेरी मुफलिसी पे तू रख
बेवफ़ा वो जनाब, शायद न हों ।
जब है मेरा वजूद कुछ भी नहीं
मेरे खातिर खिताब शायद न हों ।
रोज़ नज़रे मेरी दुआ ये करे
आज रुख पर हिजाब शायद न हों ।
खुश न होना जो पास वो आए गर
उनके हाथों गुलाब शायद न हों ।
-अजय प्रसाद