गज़ल
कौन है जो बादलों की ओट से मुस्काता रहा
कर के ईशारे रोशनी के पास बुलाता रहा
आखों पर परदे थे पहचान नहीं पाये हम उसे
बारिश की बौछार बन अहसास दिलाता रहा
लगता कभी बैठा वो मेरे मन की दरगाह में
जब झुकाया सिर कहीं खिसक वो जाता रहा
है बहुत ही प्यारा वो जैसे राधा का हो किसन
कई बार लगता रहा वो बंसी बजाता रहा
अब ढूंड रही उस छलिये को मेरी मन आत्मा
क्या यही प्रमात्मा जो रुप बदल भरमाता रहा।