“गज़ल”
“गज़ल”
प्यार में कभी सोचने की
फुर्सत नहीं रही,
मिलने पर बात करने की
हिम्मत नहीं रही .
कभी देखा उनहोंने जिन नज़रो से,
निगाहों को सम्हाल्नें की कूबत
नहीं रही.
रोज करते थे प्यार इन्तहा उनसे ,मगर
मौका पड़ने पर बताने की जुर्रत ,
नहीं रही .
इस कदर तनहा हुए,हम
उनकी याद में ,
उनसे मिलने पर मेरी ख़ामोशी
पसर गयी .
वो जानते थे मेरी कसम-कश
इस कदर ,
फिर भी कोई पहल उनसे
नहीं हुई .
इस कदर दूर रहते है ,
वो हमसे
फिर से आगाज़ करने की,
जहमत नहीं हुई .
–राजा सिंह