गज़ल र्शीर्षक # चाँद
बारहा मुझको चाँद कहा मेरे सनम ने
चाँद कह मुझमें दाग़ बताया सनम ने
तुम चाँद से भी हसीं हो मेरी ज़ानिब
हर बार यही कह बहलाया सनम ने
आँखों से जो टपके कभी आँसूं मेरे
श़बनम का क़तरा बताया सनम ने
मैं ख़ूब समझती हूं उनके अफ़साने
हर बार मुझे ऐसे सताया सनम ने
स्वरचित डॉ. विभा रजंन(कनक)