गज़ल: मुफलिसी में ज़िन्दगी दुश्वार है
गज़ल
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मुफलिसी में जिन्दगी दुश्वार है
जेब पर भारी हुआ बाजार है
पेट भरना जंग ही है आजकल
अर्थ ही सबसे बड़ा हथियार है
क्या करें क्या ना करें उलझन बड़ी
आदमी इस दौर में लाचार है
हाकिमों की ही चली है आज तक
उँगलियों पर नाचती सरकार है
कुछ गुलाबी नोट क्या दिखला दिए
फाइलों को मिल गई रफ्र्तार है
आजकल के आदमी का देखिए
हर घड़ी बदला हुआ किरदार है
कृष्ण अब केवल सहारा आपका
आपके ही हाथ में पतवार है
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद