गज़ल:–मदमस्त हसीना/मंदीप
मदमस्त हसीना/मंदीप
देख तेरे हुसन की लालिमा सारी फिजा मदहोस हो जाये,
चले जब तू ये हसींन कुदरत भी सरमा जाये।
सान,सकल ऐसी हो संगेमरमर की कोई मूर्त्त,
तुम को जो देखे वो कभी भुला न पाये।
जहाँ से भी गुजरें तू मदमस्त हसीना,
वो समा वो पल वही थम जाये ।
देख तेरे होंटो की खूबसूरत हँसी,
उपवन का हर एक फूल खिल जाये।
अगर मिल जा जाओ मोहिनी एक बार,
“मंदीप्”की भी जिंदगी सवर जाये।
मंदीपसाई