गज़ल गुलकन्द सी मीठी लगे अन्दाज प्यारा है —- गज़ल
गज़ल गुलकन्द सी मीठी लगे अन्दाज प्यारा है
अदावत है लियाकत है मुहब्बत से सँवारा है
हमारी प्यास ढूंढे रोज सागर प्यार के गहरे
मुशक्कत रूह की कितनी नदारद पर किनारा है
कतारें हैं चिनारों की हरी सी घास पर्बत पर
गगन से छांव को नीचे किसी ने तो उतारा है
मुसाफिर हूं किनारों की अभी मझधार मे अटकी
निकल जाऊंगी फिर भी मै न हिम्मत दिल ये हारा है
मुहब्बत पर लिखें कितने लिखें इसके फसाने अब
हमारी उम्र कम है पर तज़ुर्बा ढेर सारा है
सभी रिश्ते परख कर देखना आदत है” मेरी यह्
मगर क्या आजमाना उसको” निर्मल जो तुम्हारा है