गज़ल :– कब तलक वो आपसे ही रूठ कर तन्हा रहेगी ॥
गज़ल :– कब तलक वो आपसे ही रूठ कर तन्हा रहेगी ॥
बहर :-
2122-2122-2122-2122
कब तलक वो आपसे ही रूठ कर तन्हा रहेगी ।
जख्म गहरे हों अगर पीड़ा छिपाकर क्या रहेगी।
हैं बड़े हालात नाजुक हर जगह उन वादियों में ।
पर वहाँ हालात के रुख मोड़ कर जिंदा रहेगी ।
खो गए मैदान कितने वालुओ की ढेर में तो ।
अब वहां इंसानियत के नाम की तृष्णा रहेगी ।
गुम हुए जज्बात कितनों के यहाँ मुँह फेर मत तू।
गुम हुए किरदार तो भी इक अमिट काया रहेगी ।
अनुज तिवारी “इंदवार”