ग्राम कथानक
#ग्राम_की_अविस्मरणीय_गाथा
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है नमन-वंदन अनन्त
#ग्रामवासी सभी प्रबुद्ध जन को,
जिनने सींचा इस पुण्य धरा को
संस्कार युक्त हर वीर मन को !
वर्षों का अविस्मरणीय #कथानक
तप विविध सुदूर दृष्टि कलात्मक
घुट रही शनै: शनै: अचानक
हो रहा आज कैसा भयानक !
देख रहा हूं लोग कैसा इर्ष्या में निमग्न हैं –
देखकर उन्हें जो उठते #विपन्न हैं !
धन है अकूत पर द्वेष से डूबा प्रयत्न है ;
देख उन्नति ‘स्वजनों’ की नहीं प्रसन्न हैं ।
#आर्यावर्त का विघटित खण्ड
आज आक्रांताओं से घिरा भारत है ;
शेष खण्ड खण्डित जितने भी
घोर आतंक , भूख से पीड़ित सतत् है।
मानवता की रक्षक जो अवशेष #पुण्यभूमि है,
प्राणप्रिय वसुंधरा समेटी करुणा की नमी है,
हर ओर फैलाती कण प्रफुल्लता की, धुंध जहां भी जमी है ;
अनन्त नमन् करना वीरों यह दुर्लभ #भारतभूमि है।
वसुधा की इस गोद में एक ग्राम #आबाद है ,
प्रकृति की कृपा सदा बहुत , आज का #खुरमाबाद है,
कल-कल जलधारा सतत् बहाती नदियों का #संवाद है ;
हरे-भरे वनस्पतियों के आंचल अवस्थित , हो रहा #बरबाद है !
वीरों की धरणी का स्थल
बहती नदियों का शीतल जल,
वृक्षों में लगते सुस्वादु फल
जन रहा करते परस्पर सुखद्-सजल !
प्रात: सूर्योदय की किरणें समरसता फैलाती थी ,
जीवन की हरती व्यथा को #कोमलता को लाती थी ,
शस्य-श्यामला धरती मां से , विविध अनाज जन पाती थी ,
दया-दान-तप से सींचित् वातावरण, हर आगंतुक को भाती थी।
खिन्न प्रकृति आज ! धुंध भी दीखता #काला है,
बढते #चिमनियों का जो प्रदुषित निवाला है,
गिरता घरों पर इसके कण-कण का #झाला है,
सोचें ! हुई विलुप्त यदि जीवनदायिनी #नदी तो , क्या संघात् होने वाला है !
प्राकृतिक वातावरण में सर्वस्व खनिज रत्न,
उपजाऊ मृदा संपुरित, #पूर्वजों के वैभवशाली प्रयत्न ,
नहीं चतुर्दिक विविध लता विटप-वृक्ष प्रसन्न ,
हाय ! जन कैसा ला दिये क्षण #विपन्न !
घुट रहा सत्कर्म है
रो रहा निज धर्म !
बन्धु निज बान्धव को लूट
किये सौभाग्य #देश का फूट !
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पूरब से पश्चिम की ओर
ज्ञान विज्ञान का फैला #डोर
उत्तर से दक्षिण की छोर
युवा शौर्य लहरे हर ओर !
तप्त धरा की ताप हरो
मेरे वीरों संताप हरो !
कलुषित लोगों का पाप हरो
हर कष्ट आप ही आप हरो !
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मैं आह्वान करता हूं वीरों
#शौर्य-सिन्धु राष्ट्र के #रणधीरों !
नवशक्ति सृजन से जोड़ देना,
संगठित हो परस्पर सत्त्व मोड़ देना ।
जो कुछ भी हो निरन्तर
शूल पथ पर पांव चढ़ाते जाना ,
हे मेरे बन्धु ! मेरे मित्र
#ग्राम्यसंस्कृति ज्वाल जगाते जाना !
अब हमारी आस बची सबको
क्या तुम भी हाथ बढाओगे ;
यदि धर्म डूबेगी , देश डूबे तो
बन्धु ! प्रथम शीश ‘ #आलोक ‘ का पाओगे !
अखण्ड भारत अमर रहे
✍? आलोक पाण्डेय
पौष कृष्ण अष्टमी