ग्राम्य जीवन
इन गांवों में मिलती है जीवन की परिभाषा।
आशाओं को घेरे बैठी मन की घोर निराशा।
मरता हुआ हर इंसान रखता जीने की अभिलाषा।
संध्या समय ग्राम प्रांत।
कितना नीरव , कितना शांत।
कुछ घरों में अंधेरा, मगर कुछ में डिब्बियां जल रही हैं।
यहां पर है शांति का बसेरा, मगर नैतिकता जल रही है।
किसान हारा थका सा खेत से आया।
चिलम में तम्बाकू रखा और गुड़गुड़ाने लगा।
बेचारी कृषिका ने चूल्हा जलाया,
हुक्का ठीक से बना बड़बड़ाने लगा।
किस्मत में नहीं दो घड़ी भी सुकून ।
रंभाती गाय को देख छुटता जलून।
तू तो आते ही लग गई रसोई तपने में।
जैसे क्या घंटों लगेंगे बस दूध पकने में।
तिमन क्या पकाएगी रखा होगा दोपहर का।
लाल मिर्च उठा दे तड़का लगा दूं अरहर का।
जल्दी चल छप्पर में रखी दांती से जून काट दे।
फिरा दूं तू अबास लगा चल गौत काट दे।
भूखे डांगर हो रहे हैं रेखा विक्रांत।