“ग्रामीण युवा (दोहा छंद)
“ग्रामीण युवा”(दोहा ”
1.
तुम ही उजल भविष्य हो, तुम ही गाँव कि शान।
वजूद तुम हो गाँव का, तुम ही हो पहचान।।
2.
तुम बड़ो तो गाँव बड़े,तुम हो गाँव कि आन।
जुनून तुम हो गाँव का, तुम ही हो सम्मान।।
3.
तुम कालों के काल हो,तुम हो बहुत महान।
तुम चाहो तो नाश हो,तुम चाहो निरमान।।
4.
तुम चाहो धरती हिले, फट जाय आसमान।
गर तु मन में ठान लें, तुझको मिले जहान।।
5.
तुम गाँव के हो पहरी, तुम ही हो अरमान।
तुम ही गीता गाँव की, तुम ही पाक पुरान।।
6.
प्रेम भाव रखो मन में, मिल जाये भगवान।
करलो एेसा काम तुम, बन जाये पहचान।।
रामप्रसाद लिल्हारे “मीना “