ग्रन्थों का सार है गीता
***ग्रंथों का सार है गीता***
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जीवन का आधार है गीता,
पावन जल की धार है गीता।
फल की नाहक छोड़ता चिंता,
बद ख्याली संहार है गीता।
स्वयं का संज्ञान हो जाता,
मनभावन संसार है गीता।
सम्यक सा है ज्ञान गीता का,
मन योगों का हार है गीता।
जो फंसे उलझाव सुलझाता,
सूक्ष्म मन का तार है गीता।
कर्मों की प्रधानता ज्ञाता,
सब ग्रंथों का सार है गीता।
मनसीरत चित डूब जाए,
नैया करती पार है गीता।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)