गौरैया
गौरैया दिवस पर विशेष –
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कहाँ गई प्यारी गौरैया,
सोचो और विचारो भैया।
आँगन में खूब फुदकती थी,
बैठ मुंडेर चहकती थी।
अब उसका कोई पता नहीं,
अपनी तो कोई खता नहीं?
आखिर ऐसा क्यों होता है,
खो जाने पर दिल रोता है।
पहले से देते ध्यान नहीं,
क्या हम ऐसे श्रीमान नहीं?
अब हम नीड़ बनाते हैं,
दाना रोज़ खिलाते हैं।
नहीं जरूरत है अब इसकी,
सोचो क्यों गौरैया खिसकी?
उसको अपना परिवेश चाहिए,
अपना प्यारा देश चाहिए ।
नीड़ बसेरे खुद बुन लेगी,
दाना-पानी खुद चुग लेगी।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय