गौरेया
आंगन के कोनो में आकर
ची ची गीत सुनाती थी
चावल के दाने पाकर पूरा परिवार बुलाती थी।
मीठी मीठी मधुर स्वरों में
गुनगुन गीत गाती थी।
गौरेया आंगन में आकर
फुदक फुदक इठलाती थी।
दबा चोंच में चावल दाने
उडी घोसले पर बैठी
छोटे बच्चों को वत्सलता से
खिलाती सुख पाती थी।
मेरे बचपन की यादों संग
आज याद आ जाती है ।
मीठी ध्वनि है पर छोटे से
नभ की नाप ले आती थी।
गौरेया है जुडी याद संग
आंगन में चहक सुनाती थी।
तिनका तिनका जोड नीड में
सुंदर गूंथ लगाती थी।
कितना करती काम सुबह से
थकती न सुस्ताती थी।
कुछ दाने पाकर खुश होती
दिन भर धूम मचाती थी।
अगर पकड़ना चाहू उसको
फुर से वह उड़ जाती थी ।
छोटे छोटे बच्चे सात
रहे घोसले में दिन रात
उग रहे थे पंख नये
उडना है कुछ दिन की बात ।
रहे ताकते दिन में माता को
चिड़िया उसे चुनाती थी।
कम खाती पर ले आती
भर भर चोंच खिलाती थी।
मिट्टी में कभी जल से
फडफड करती नहाती थी
गौरेया आंगन में आकर
फुदक फुदक इठलाती थी।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र