गौरेया (ताटंक छन्द)
घर आँगन की राज दुलारी,
प्यारी चुनमुन गौरैया
कभी अकेले कभी झुंड में
करती है ता ता थैया ।।
तिनका तिनका चुन-चुन कर यह,
अपना नीड़ बनाती है
फुदक फुदक कर घर आँगन के,
कीड़े चट कर जाती है।।
कभी नाचती कभी झगड़ती
इधर इधर बलखाती है
छोटे छोटे पर है लेकिन,
नहीं पकड़ में आती है।।
खपरैलों के बाँस झरोखे,
उसको लगते प्यारे हैं
कंकरीट के महलों ने घर,
तोड़े उसके सारे हैं।।
अब न कहीं मुंगेर बचे हैं
और न कहीं झरोखे हैं
चित्रों में गौरैया दिखती,
सब नवयुग के धोखे हैं।।
उजड़ गए सब बाग बगीचे,
और न दिखती गौरैया।
यादों में बस सिमट रही वो,
चेतो जल्दी से भैया।।
नाथ सोनांचली