गौरी राह निहारे
दर पर बैठी गोरी राह निहारे (विरह-गीत)
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दर पर बैठी गोरी राह निहारे,
पिया जी अब तक क्यों नहीं घर पधारे।
चिंता में लीन नार कुछ नहीं बोलती,
विचारों में खोई बस मन में सोचती,
रात हुई चाँदनी चमकते हैं तारे।
पिया जी अब तक क्यों नहीं घर पधारे।
गोरे – गोरे गाल हुए लाल गुलाबी,
सोचे अकेली हुई कहाँ पर खराबी,
जीवन में है वही जीने के सहारे।
पिया जी अब तक क्यों नहीं घर पधारे।
लाल सलवार सफ़ेद कुर्ती कमाल है,
दिलदार बहुत दूर हुआ बुरा हाल है,
वक्त के आगे फैल हुए यत्न सारे।
पिया जी अब तक क्यों नहीं घर पधारे।
मनसीरत है जिसके सपनों की रानी,
यौवन से भरी हुई है चढ़ती जवानी,
डूब चुके हैं अब तो नदी के किनारे।
पिया जी अब तक क्यों नहीं घर पधारे।
दर पर बैठी गोरी राह निहारे।
पिया जी अब तक क्यों नहीं घर पधारे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)