गोलगप्पा/पानीपूरी
पानी-पूरी पापड़ी,गुपचुप गोल-मटोल।
बच्चे से बूढ़े सभी, खातें हैं मुँह खोल।।
पानी -पूरी देखकर,आता मुँह में लार।
मन ललचाता है बहुत,हुआ जीभ लाचार।।
गुपचुप तो हर आयु में,होता बहुत पसंद।
गम चिंता को भूल कर,पाते हैं आनंद।।
लड़के हो या लड़कियाँ,सबका पहला प्यार।
फुचका खाने के लिए,हरदम हैं तैयार।।
कभी एक के दस बिका,अब दस के दो-तीन।
खड़े हुए हैं राह में, फुचके के शौकीन।।
कभी किसी के सामने,नहीं झुकाया माथ।
पानी-पूरी के लिए,फैलाये हैं हाथ।।
गुपचुप होठों को छुआ,हुआ अजब अहसास।
लाया आँखों में नमी,भरी अगन से साँस।।
अंदर आलू चटपटा,भरा मसालेदार।
चटनी इमली सोंठ की,स्वादों का भंडार।
खट्टा-मीठा चटपटा,अलग- अलग है स्वाद।
खाते सूखी पापड़ी,फिर फुचका के बाद।
फुचका लोगों के लिए,होता कितना खास।
मेले लगते हर दिवस,इस ठेले के पास।।
जब मिलता मौका हमें,गुपचुप लिए डकार।
पानी- पूरी के बिना,जीवन है बेकार।।
पानी- पूरी का नशा,सब पर छाया यार।
मगर अधिक जो खा लिया, हो जाता बीमार।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली