मेघ गोरे हुए साँवरे
मेघ गोरे हुए साँवरे
लो थिरकने लगे पाँव रे
देख मन भावनी सी पवन
और महका हुआ ये चमन
भाव में डूब बहने लगी
कल्पना गीत रचने लगी
घूम आई बहुत दूर तक
मन बसे याद के गाँव रे
मेघ गोरे हुए साँवरे
शोर बिजली करे जोर से
शाम लगता मिली भोर से
हैं धरा भी ख़ुशी में मगन
पर अकेला हुआ ये गगन
चाँद सूरज सितारे नहीं
बादलों की घनी छाँव रे
मेघ गोरे हुए साँवरे
प्रीत दिल में कहीं पल रही
पर विरह आग में जल रही
भीगते साथ तन और मन
पर बुझाये बुझी कब अगन
खेलते प्यार में ही रहे
हार या जीत के दाँव रे
मेघ गोरे हुए साँवरे
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र)