गोरी का आंचल
लहराता गोरी का आंचल लहराता …
लहर लहर कर उड़ता तन से .
मचल मचल कर वक्षस्थल से
करता घायल मेरा अंतर ,,
उन लहरों में मन रमता है ..
प्यार चूमता इन लहरों में ‘
उड़ता ही जाता है हरदम .
मन भी उड़ता तन भी उड़ता
स्वप्न तैरते तरसाते ललचाते
हमजोली हो आंचल उसका
उड़ता मेरे ढिंग आताही जाता
आंचल से आनंदित होता
मधुर मधुर झोंके दे जाता
सावन भान्दों जैसे उठकर
तरसाता रहता है बरबस
गोरी का दिन रैन ये आंचल ……