गोरखपुर हत्या
माँ अब न मैं आऊँगा,
बेरहम इस दुनिया में,
जहाँ हवा हो इतनी महँगी,
तेरी इस दुनिया में,
जहाँ जिन्दगी का मोल नहीं हो,
ऐसी ही तेरी दुनिया है,
जहाँ सत्तर वर्ष का जश्नन होगा,
सत्तर बच्चों की लाशों पर,
होकर खड़े लाल किला पर
राष्ट्रवादी रोयेंगे ।
ग्वाल गोपियां भी चुप हैं,
नन्हें कृष्णों के हत्याओं पर ,
प्रधानसेवक चुप हैं जैसे,
हम तो उनके मतदाता नहीं ,
गाय के नाम पर रोने वाले
हम बच्चों को भुल गये
पेशावर के बालक याद हैं उन्हें ,
हम भारतवासियों को भुल गये,
जो बच्चों को भारत का भविष्य कहते थकते नहीं,
कैसे वो अपने भविष्य के लिये भारत के भविष्य को भुल गये ।।
अभिनव