गोपनीय
प्रेम जो बयां था नजर में
शब्द जो ठहरे थे अधर में
आज भी रखे है गोपनीय
जानते हो क्यों ?
उनमें संस्पर्श है हमारा
प्रणय निवेदन है हमारा
बयां है जिसम़े मुहब्बत
हर अल्फाज है खूबसूरत।
कब कहाँ मिले थे तुम ?
क्यूँ चाहने लगे थे हम ?
एक अन्तराल बाद भी
वो अनकहे पल गोपनीय
जो आज भी है शोचनीय।
जानते हो क्यों ?
क्योंकि इनमें है प्रेम गहराई
हिलोरे लेती जवान दिल अमराई ।
साथ निभाने की रीति
मेरी और तुम्हारी प्रीति ।
इसलिये ये रखे गोपनीय है
यूँ ही रखना है अशोभनीय
इनमें है हमारे प्रेम के शोर
बयां करते आरोह अवरोह
इसलिये अपनों से है गोपनीय ।