गोत्र भाई
गोत्र भाई
कार्यालय के प्रांगण में सभी बाबू मजमा लगाए बैठे थे। चर्चा का विषय कुलवंत बाबू था। जो हाल ही में तबादला करवा के अपने गृहनगर गए हैं।
बलदेव बोला, “हमें तो कुलवंत की पहुंच का अंदाजा ही नहीं था कि उसकी इतनी चलती है। दिखावे में तो अपनापन जताता था। एक ही इलाके के होने की बात करता था। परन्तु दिल की कभी नहीं बताई। कुरेद-कुरेद कर पूछ सब कुछ लेता था।
बीड़ी का कश लगा कर, खांसते हुए बलजीत बोला, “मुझे तो कोई बात नहीं पचती, लोग जाने क्या-क्या छिपा लेते हैं? कुलवंत ने कानों-कान खबर नहीं लगने दी। अपना तबादला करवा लिया।
इसी बीच सुरेन्द्र नैन का दुख भी उसके ओठों तक आ ही गया। कहने लगा, “उसने तो मुझे भी कुछ नहीं बताया। मैं तो उसका जाति भाई ही नहीं गोत्र भाई भी था।
सब के सब अपने दुखों से दुखी नहीं थे बल्कि कुलवंत के सुखों से सुखी थे।
-विनोद सिल्ला