गैस कांड की बरसी
अस्सलाम वालेकुम अनवर मियां, कांसे से चले आ रिये हो। मियां सलाम वालेकुम, अरे खां जरा सेंट्रल लाइब्रेरी गिया था, कल गैस कांड की बरसी है, अपने कंजे मियां का टेंट लग रिया है, आजकल उनके पास काम कर रिया हूं। अरे मियां तुमने तो कहां की मनहूस याद दिला दी, कसम से मियां भोपाल का वो खौफनाक मंजर, पूरा सीन आंखों में उतर आया है, मेरे बालिद साहब, मामू, बाजी, ओर मेरा भांजा एक 2 साल का ही था, कुछ दिन के बाद फूफी मेरे खालू भी क्या-क्या बीमारियां हो गई थीं उन्हें, सब के सब खुदा को प्यारे हो गए थे, कोई पुरसाने हाल नईं था, कितने मरे, कितने घिसट घिसट कर जी रिये हैं। सरकार ने अस्पतालें बनाईं, मियां बहुत बुरे हाल हैं, एक वो सुपर स्पेशलिटी खोली थी, न डॉक्टर न दवाई, मियां मैं तो कै रिया हूं उस जहरीली गैस की दबा है ही नई डाक्टरों के पास, बीमारियां भी न जाने कितनी हो रहीं हैं। पता नहीं मियां क्यों हर साल उस खौफनाक कांड की बरसी मना कर याद दिलाते हैं, भाषण पेल कर चले जाते हैं, करते धरते तो कुछ
नई। मियां पूरा का पूरा महकमा, एक विभाग बना रखा है, ये करता क्या है, पंडित मौलवी ग्रंथि और फादर को बुला लेते हैं, दो चार नेता आ जाते हैं, पंडित कुछ मंतर मार देता है, मौलवी फातिहा पढ़ देता है, ग्रंथि साहब भी कुछ पढ़ देते हैं, फादर भी अपनी कुछ सुना देते हैं। नेता कहते हैं हमने बहुत किया है और अभी करना बाकी है। अरे खां 36 साल हो रिये हैं, करा क्या आपने? जब्बार मियां चले गए 35 साल लड़ते-लड़ते, कितने मर गए और मरते जा
रहे हैं। जिंदों का पुरसाने हाल नहीं, मरों को श्रद्धांजलि देते हैं। कितनी सरकारें आईं और गईं सब ढाक के तीन पात, मुआवजा बांट दिया मियां होता क्या है 25000 से, जिंदगी की कीमत
सिर्फ 25000/ ? मियां अभी भी लोग आस लगाए बैठे हैं, कोर्ट में केस चल रिया है, और मुआवजा मिलेगा आस लगाए कई निकल लिए, और आस में कई निकल जाएंगे। सरकार हर साल गैस कांड की बरसी मनाती रहेगी, महकमा यूं ही चलता रहेगा। हां मियां सही कह रिये हो। तू बता कैंसे बच गया था? अरे मियां मैं तो उस वक्त छोटा था, घरवाले भागते वक्त मुझे भूल गए रजाई में दवा छोड़ गए थे, मियां में सही बताऊं जो दबे पड़े रह गिये बच गए, उन्हें कुछ नहीं हुआ, जो जान बचाकर भाग रिये थे, वह ज्यादा चपेट में आ गिये है थे। मियां क्या हाल हो गए थे भोपाल के, कब्रिस्तान में जगह नहीं, श्मशान में इकजाई फूंक दिये,हो गिया क्रिया करम,ओर मियां मैंने तो सुना था टिरक में भर भर के लाशें नर्मदा में फिंकवा दीं थीं।न शासन न प्रशासन न मंत्री न मुख्य मंत्री मियां सबको अपनी जान के लाले पड़े थे, मियां सब भाग गिये थे। ओर वो क्या नाम था, कारखाने के मालिक का, अरे वो एंडरसन उसको पकड़ने की जगह सरकार ने सुरक्षित देश से बाहर निकल जाने दिया था। और फिर अफवाहों से कैसे हिल जाते थे,हम तो मियां मामू के गांव चले गए थे। हां मियां दास्तान लंबी है, काम पर जाना है, ये तो चलता रहेगा। खुदा हाफिज खुदा खैर करे।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी