गैर का होकर जिया
आदमी था इसलिए वो आदमी होकर जिया
ज़िंदगी भर आँसुओं को आँख में रोक कर जिया
बीज बोया प्यार का परिवार अपनों के लिए
नफ़रतों में आत्म का सम्मान है खोकर जिया
ताक पर रख ख्वाहिशें रौशन किए टूटे दिए
अपने तो बस अपने ही हैं गैर का होकर जिया
था हँसाता दूसरों को खुद छुपाया दर्द था
चेहरे पर भी एक चेहरा ओढ़कर जोकर जिया
और से क्या काम जब था प्यार उससे ही सुधा
प्यार की खातिर तो रुसवाई को भी ढोकर जिया
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
21/7/2023
वाराणसी,©®