गृहस्थ आश्रम
संतन का संग होता, सत्संग आश्रय होता.
संतो का निवास होता ,त्याग होना चाहिए.
अर्थ धर्म कर्म मुक्ति,कर्म योग श्रेष्ठ युक्ति। साक्षी सम भाव होना चाहिये।
कर्म ज्ञान भक्ति योग, जानो पर ब्रह्म जोग
, असाध्य नही चाहिये।
छाये खूब रसराज ,करुणा ममत्व आज।
नवरस नव ताल, बाध्य होना चाहिये।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम