गूफ्तगू
गुफ्तगू कर ही लो अभी सामने हैं हम।
फिर ना आयेंगे लौटकर उस जहां से हम
दास्ता ए बांच लो जो छपी है दिल में आपके।
मिट गया वजूद तो ना मिलेंगे ढूंढने से हम।।
हस्ती मिटी ना चरागों की आंधियों के जोर से।
खुदा था मेहरबा तो बाकी रहे बुझने से हम।।
कमतर कहां थी कोशिशें उल्फत की राह में।
बेवजह की बात से बचे रहे मिलने से हम।।
टिकाऊ नींव थी जानिब दोनों के मोहब्बत की।
बुलंद ए अर्श है बचे रहेंगे क्या गिरने से हम।
आशिक रहा है खैरियत में जबकि रात थी।
दाग दाग उजाले में आंख से क्यों उतरे थे हम ।।
उमेश मेहरा
गाडरवारा ( एम पी)
9479611151