” गूगल बना गुरु द्रोणाचार्य “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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हम स्वयं लिखते भी हैं और दूसरे के श्रृजनात्मक कृतिओं का अध्ययन भी करते हैं ! हरेक रचनाकारों और कविओं की कृतिओं में अधिकांशतः कोई न कोई अनमोल निधि छिपी होती है ! हम यदि शांतचित और एकाग्रता से अध्ययन करते हैं तो यथासंभव ज्ञान का आलोक मिलता है ! नये-नये शब्दों के उपयुक्त प्रयोग ,विभिन्य भवनाओं को दर्शाना ,उल्लास और व्यथा को व्यक्त करना और कुशल प्रस्तुति के माध्यम को देखकर हम बहुत कुछ सीखते है ! किन्हीं के कृतिओं को पद के आत्मविभोर हो उठते हैं और सोचने पर विवश हो जाते हैं कि ‘ काश !…. हम भी ऐसे होते ! धनुष -बाण तो सब रख सकते हैं पर अर्जुन सब नहीं हो सकता ! हाँ …एकलव्य तो हम बन सकते है ! लगन ,परिश्रम ,चाह और लक्ष्य भेदने की लालसा यदि हम में है तो विजय पताका भी हमारे हाथों में होगा !….. हमारे हाथों में गूगल का ब्रह्मास्त्र है ! गरु द्रोणाचार्य का आशीष आपके माथों पर है ! हम इसका उपयोग यदि सही करेंगे तो हमें अर्जुन बनने से कोई नहीं रोक सकता………….. !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस .पी.कॉलेज.रोड.
दुमका
झारखंड
भारत