गूंगी पीड़ा
सूनापन संग हैं।
हर रंग बेरंग हैं।
विधवा का तन है।
परित्यक्त का मन है।
बेजान जीवन हैं।
कहरता हर – पल हैं।
गूंगी पीड़ा जेहन
हर पहर हैं।
दर्द सिर्फ दर्द संग हैं।
हर नजर तौलता
अपनेपन में घूरता
अपनापन भी मेरे लिए झूठा है।
सिर्फ सामने बोली मीठा हैं।_ डॉ . सीमा कुमारी बिहार ,
भागलपुर, दिनांक-7-3-022 मौलिक स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ।