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2 Jan 2022 · 1 min read

गुज़ारिश

डा ० अरुण कुमार शास्त्री -एक अबोध बालक -अरुण अतृप्त

आरजू न हो किसी की इस तरह एय ख़ुदा
हर शख्स अब उसके जैसा नज़र आता है ।।

निबाह रहा हूँ दुनिया दारी जीने के लिए
लेकिन हर कदम अब हाशिये पे नज़र आता है ।।

वो उदास हो तो मैं भी उदास हो जाता हूँ
हर तरफ गफ़लत का मौसम हो जाता है।।

नसीब अपना अपना खुलूस अपना अपना
मेरा पैमाना दूसरों का आईना दिखाता है ।।

शिकायत करूँ के न करूं सुनी तो जाएगी
बमुश्किल, यही सोच कर के चुप रह जाता हूँ ।।

बड़ी सफलता का प्रयोग न तो मैं करता था
बड़े ईनाम का न कोई जुनून था दिल में।।

सुकून एक पल का मिले मुझको मुसलसल
यही बस तो दुआ मैं ख़ुदा से नेक चाहता था ।।

तमन्ना थी कि वो किसी से अपने दिल की बात कर पाती
मग़र मेरी समझ में ये इशारा न उसकी समझ में आता है।।

चलो अच्छा हुआ किसी ने अरुण का दिल तोड़ा
ख़ुदाया वालदैन की बात रखने का मिलेगा अब मुझे मौका ।।

1 Like · 2 Comments · 219 Views
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