गुस्से में
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ये तेवर हैं बहुत तीखे ,गज़ब अंदाज़ गुस्से में।
लगे है खूबसूरत और भी ,हमराज गुस्से में।।
कहा अबतक न हालेदिल,मगर जब रूठे तो बोले।
परत दर फिर परत खुलते गये,सब राज गुस्से में।
पता कमजोरीथी इसकी,ये ताक़तसे न वाकिफ थे
कि कितनीफुर्ती से करतीहै औरत,काज गुस्से में।
रहीं नजदीकियाँ समझे,अधर खोले बिना हरबात।
मगर दिल दूर हों तब ,तेज हो आवाज गुस्से में।।
नहीं जब प्यार की बातें ,तो लब खामोश रहने दो।
उतर जाएंगे दिल में अब, कहे अल्फ़ाज़ गुस्से में।।
कहीं बारिश कहीं सूखा ,महामारी भी फैली है।
कि शायद आसमां में हैं ,अभी यमराज गुस्से में।।
बुराई का सदा से ही, बुरा परिणाम होता है।
डरो अंजाम से उसके ,जो हो आगाज़ गुस्से में।।
घटाओं में छुपाया उसने ,अपना चाँद सा चहरा ।
झलक को रात भर तरसा रही ,मुमताज़ गुस्से में।।
लगा मुस्कान से भी खास ,वो गुस्से में अपनापन।
मिले हैं ज्योति से प्रियवर भले ही आज गुस्से में।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव
साईंखेड़ा