गुस्सा
गुस्सा (दोहे)
गुस्सा गागर पाप का,फुट करे विध्वंस।
आत्मघात का पुंज यह,जैसे रावण -कंस।।
क्रूर भाव अति दुष्टता,मन में गंद विचार।
दुखदायी अनहित करे,गुस्सा कंटक तार।।
गुस्सा करता जो मनुज,वही भोगता नर्क।
पीता रहता रात-दिन,विष-तरुवर का अर्क।।
गुस्से में करता सदा,मनुज सत्य का नाश।
जाता है पाताल में,किन्तु लगे आकाश।।
करे मूर्खता हर समय,गुस्से में सब बात।
अच्छा लगता है बुरा,दिन को समझे रात।।
वह मति मन्द गँवार अति,चहरे पर है क्रोध।
बात-बात में उलझता,नहीं शांति का बोध।।
हिन्दी काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।