Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Feb 2022 · 3 min read

गुस्सा कितना उचित ?

इच्छा के विरुद्ध किसी अपने का कोई कार्य जब मन में रोष उत्पन्न करता है तो उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप मन में जो उग्र मनोभाव उत्पन्न होता है उसे गुस्सा कहते हैं, या इसे साधारण शब्दों में समझे तो जब कोई मांग पूरी नहीं होती या किसी की अपेक्षा पर कोई खरा नहीं उतरता तब अंहकार को चोट पहुंचती है, जो गुस्से का कारण बनती है, गुस्सा जो कभी सहज नहीं होता और इसे किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता है, गुस्सा वास्तव में किसी भी इच्छापूर्ति का मन माफिक परिणाम न मिलने का दुःखद परिणाम होता है, गुस्सा दूसरे के दुःख का कारण नहीं बनता बल्कि स्वयं के दुःख का कारण भी बन जाता है, असंख्य लोगों की ज़िन्दगियों को गुस्से ने लील लिया है, वास्तव में गुस्सा मानसिक अस्थिरता का परिणाम होता है जिसमें व्यक्ति इतना अंधा हो जाता है कि उसके सोचने समझने की शक्ति ही क्षीण हो जाती है ऐसी अवस्था में वो सही गलत में अंतर करना भी भूल जाता है जिसके परिणाम स्वरूप • गुस्सा कभी किसी की ज़िन्दगी को छीनता है तो कभी किसी की इज्जत को मिट्टी में मिला कर ही शान्त होता है और ये दोनों चीजें ऐसी है जो एक बार जाती हैं तो दोबारा लौट कर नहीं आती, फिर चाहें कोई कितना भी पश्चाताप की आग में जले कोई लाभ नहीं होता इसलिए गुस्से को हराम कहा गया है क्योंकि ये किसी भी रूप में उचित नहीं होता सिवा हानि के,उचित बात के लिए गुस्सा करना जहां हमारे जीवित होने का सबूत देता है वहीं गलत बात को स्वीकृति प्रदान करवाने के लिए गुस्से का प्रदर्शन करना कमज़ोर व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करता है यहां पर ऐसे व्यक्ति को आत्मनिरीक्षण की बहुत आवश्यकता होती है क्योंकि जब हम किसी से जबरन अपनी बात मनवाने के लिए ब्लैकमेलिंग करते हैं या उसकी छवि को दूसरे के समक्षधूमिल करते हैं तो पूरा पूरा प्रयास भी करते हैं कि उसके अनुचित कार्य के लिए उसके गुस्से के लिए भुक्तभोगी ही ज़िम्मेदार है अगर वो उसका कहना मान लेता तो उसे ऐसा कभी भी ऐसा नहीं करना पढ़ता, जबकि ऐसी सोच रखना बिल्कुल गलत है सबको अधिकार है अपनी जिन्दगी को अपने हिसाब से जीने का आप अपनी ज़िन्दगी को जैसे चाहें जिये लेकिन दूसरे की ज़िन्दगी में हस्तक्षेप करने का आपको कोई अधिकार नहीं, न का मतलब न ही होता है उसे उसी रूप में स्वीकारना सीखे, जबरदस्ती से न को हो में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है, गलत हमेशा गलत ही रहता है उसे किसी भी परिस्थिति में सही नहीं कहा जा सकता है, जिसने दुःख पहुंचाया उसे भी दुःख पहुंचाने की इच्छा रखना वास्तव में आपकी हार को और आपकी संकुचित मानसिकता को अभिव्यक्त करता है, अपने गुस्से की संतुष्टि के लिए किसी के अहित का सोचना किसी भी रूप में उचित नहीं, गुस्से में इतना असंतुलित हो जाना कि किसी भी रूप में उचित नहीं, किसी के इंकार करने पर तेजाब फेंक देना, आग लगा देना जान दे देना, ब्लैक मेल करना आदि किसी भी रूप में उचित नहीं, हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम ठंडे दिमाग से गुस्से के कारणों को समझे वहीं सामने वाले के इंकार के कारणों को भी जानने और समझने की कोशिश करें क्योंकि एक तरफा फ़ैसले हमेशा दुःख का कारण ही बनते हैं, अपनी सोच को निष्पक्ष रखिये, तार्किक रूप से सही ग़लत में अंतर करना सीखिये, ऐसा करके हम बहुत बड़े नुकसान से बच सकते हैं और दूसरों को भी सुरक्षित रख सकते हैं, कहते भी हैं कि अगर किसी को समझना तो उसे गुस्से की अवस्था में देख लो, बहरहाल गुस्सा केवल एक भावना नहीं बल्कि हमें दूसरों के समक्ष अभिव्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम भी है, ग़ुस्से में इंसान अपने अंदर छुपी भावनाओं को अभिव्यक्त कर देता है गुस्से में बोले गये लफ़्ज़ों के ज़ख्म कभी -कभी वक़्त भी भरने में नाकाम रहता है आपका अपने गुस्से पर नियंत्रण वास्तव में आपके उच्य व्यक्तित्व को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि जो व्यक्ति खुद पर नियंत्रण नहीं रख सकता वो किसी अन्य पर नियंत्रण क्या रखेगा ? समझने वाली बात है इसलिए गुस्सा करते समय एक बार नहीं सौ बार सोचें, गुस्सा प्रेम को खत्म करता है गुस्से में लिए गये निर्णय ज़िन्दगी भर का पछतावा बन जाते हैं आपका बेवजह का गुस्सा आपके खूबसूरत रिश्तों के टूटने का तो कभी-कभी किसी की नज़रों में आपको गिराने का कारण भी बन जाता है और ध्यान रहे नजरों से गिर कर फिर कोई कभी नहीं उठता।

डॉ फौजिया नसीम शाद

Language: Hindi
Tag: लेख
19 Likes · 580 Views
Books from Dr fauzia Naseem shad
View all

You may also like these posts

Independence- A mere dream
Independence- A mere dream
Chaahat
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
ग़ज़ल:- रोशनी देता है सूरज को शरारा करके...
ग़ज़ल:- रोशनी देता है सूरज को शरारा करके...
अरविन्द राजपूत 'कल्प'
हो सके तो तुम स्वयं को गीत का अभिप्राय करना।
हो सके तो तुम स्वयं को गीत का अभिप्राय करना।
दीपक झा रुद्रा
मां शारदे कृपा बरसाओ
मां शारदे कृपा बरसाओ
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
*पाए हर युग में गए, गैलीलियो महान (कुंडलिया)*
*पाए हर युग में गए, गैलीलियो महान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
आधे अधूरे ख्वाब
आधे अधूरे ख्वाब
ललकार भारद्वाज
पर्यावरण
पर्यावरण
Neeraj Agarwal
बुढ़ापा भी गजब हैं
बुढ़ापा भी गजब हैं
Umender kumar
3250.*पूर्णिका*
3250.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दिन निकलता है तेरी ख़्वाहिश में,
दिन निकलता है तेरी ख़्वाहिश में,
umesh vishwakarma 'aahat'
शहर का मैं हर मिजाज़ जानता हूं....
शहर का मैं हर मिजाज़ जानता हूं....
sushil yadav
शीर्षक - बचपन
शीर्षक - बचपन
Ankit Kumar Panchal
तुम बिन
तुम बिन
Vandna Thakur
फ़ासले
फ़ासले
Dr fauzia Naseem shad
अपने दर्द को अपने रब से बोल दिया करो।
अपने दर्द को अपने रब से बोल दिया करो।
इशरत हिदायत ख़ान
जहां सीमाएं नहीं मिलती
जहां सीमाएं नहीं मिलती
Sonam Puneet Dubey
माँ दहलीज के पार🙏
माँ दहलीज के पार🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
!! स्वच्छता अभियान!!
!! स्वच्छता अभियान!!
जय लगन कुमार हैप्पी
जिनमें कोई बात होती है ना
जिनमें कोई बात होती है ना
Ranjeet kumar patre
"बदल रही है औरत"
Dr. Kishan tandon kranti
कोई भी इतना व्यस्त नहीं होता कि उसके पास वह सब करने के लिए प
कोई भी इतना व्यस्त नहीं होता कि उसके पास वह सब करने के लिए प
पूर्वार्थ
खूबसूरत देखने की आदत
खूबसूरत देखने की आदत
Ritu Asooja
क्या लिखूँ....???
क्या लिखूँ....???
Kanchan Khanna
Whenever Things Got Rough, Instinct Led Me To Head Home.
Whenever Things Got Rough, Instinct Led Me To Head Home.
Manisha Manjari
दिल हर रोज़
दिल हर रोज़
हिमांशु Kulshrestha
एक राधा, एक मीरा, एक घनश्याम
एक राधा, एक मीरा, एक घनश्याम
Dr.sima
सत्य क्या है?
सत्य क्या है?
Rambali Mishra
वाल्मिकी का अन्याय
वाल्मिकी का अन्याय
Manju Singh
sp109 खेल खेले जा रहे हैं
sp109 खेल खेले जा रहे हैं
Manoj Shrivastava
Loading...