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8 Jan 2017 · 1 min read

गुल्लक

” गुल्लक ”
बन्द देह की गुल्लक में अपनी काया है
छोडो दौलत का मोह झूठी यह माया है
हसरतों से उपर के सपने होते है झूठे
लालच से उत्पन्न हुई ये कैसी छाया है
निर्धन को न मिलती दो वक्त की रोटी
खेल दौलत का यह किसने सिखाया है
आसमां की चादर में लिपटी ये गरीबी
घर धनवालों का आज किसने सजाया है
मासूमियत भी करती हुई बाल मजदुरी
घूट जहर का मासूमों को किसने पिलाया है
__________________अभिषेक शर्मा

Language: Hindi
360 Views
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