गुलों पर छा गई है फिर नई रंगत “कश्यप”।
गुलों पर छा गई है फिर नई रंगत “कश्यप”।
हर तरफ देख लो कैसा शबाब छाया है।।
चहक रहें हैं परिंदे भी रुत महक सी रही।
चमन में आके कोई फिर से मुस्कुराया है।।
गुलों पर छा गई है फिर नई रंगत “कश्यप”।
हर तरफ देख लो कैसा शबाब छाया है।।
चहक रहें हैं परिंदे भी रुत महक सी रही।
चमन में आके कोई फिर से मुस्कुराया है।।