गुलाम
सीता का विवाह हुए अभी चार महीने ही बीते थे। सब कुछ ठीक चल रहा था। बस रोहन के व्यवहार में थोड़ा बदलाव आया था। सीता जब भी ऑफिस से लेट आती तो रोहन तने देना शुरू कर देता। जब देखो तब उसे निचा दिखाने में लगा रहता। छोटी-छोटी बात पर झगड़ा करने लगता। एक दिन की बात है सीता की सांसू माँ आई हुईं थीं। सीता शाम को ऑफिस से जल्दी लौट आई। वो सांसु माँ से बाते कर ही रही थी की तभी रोहन मोबाईल में किसी से बाते करते हुए बिना जूता खोले घर घूस गया। फिर जब उसकी बातें ख़तम हुई तो कपड़े उतारकर फेंक दिए और मोबाईल पे लग गया। थोड़ी देर बाद उसने सीता से पानी माँगा। सीता पानी ले के जा रही थी तभी उसके हाथ पानी जमीं पे चालक के गिर गया और थोड़ा रोहन के पाजामे पे। रोहन तुरत उठके उसके मुँह पे एक चमेटा मारा और बोलै ‘तुमसे एक गिलास पानी माँगा वो भी तुमसे संभल के नहीं दिया गया। सिर्फ ऑफिस में रात के नौ बजे तक लफंदर गिरी करना आता है। ‘ रोहन ने सीता की अपनी माँ के सामने पूरी बेजती कर दी। सीता ने कुछ नहीं बोला। वह चुप-चाप रोटी हुई अपने कमरे में चली गयी। रोहन की माँ सब कुछ देख रही थी। उन्हें ये बात बिलकुल पसंद नहीं आयी। वो जाके रोहन को तीन- चार चपत लगाई और बोली ‘मैंने तुझे यहीं संस्कार दिए है? मैं शाम से तेरी हरकते देख रहीं हूँ। मुझे बिलकुल पसंद नहीं आई। पत्नी से ऐसे पेश आते है। तुझे तो पत्नी की कदर नहीं है। पत्नी घर की लक्ष्मी होती है। और तू लक्ष्मी को मर के भागना चाहता है। वो औरत है औरत किसी की गुलाम नहीं। जो सबके इशारों पे नाचेगी। सीता जैसी पत्नी और बहु दुनिया में किसी-किसी को ही मिलती होगी। बेचारी घर बहार दोनों संभालती है। थक जाती होगी। जा जाके उससे माफ़ी मांग और आज रत का खाना तू ही पकायेगा।