गुलाम
समीर शहर के सबसे मशहूर स्कूल में पढ़ता था और पढ़े भी क्यों न नगर के अरबपति व्यवसायी “मित्तल ग्रुप” के मालिक अमर मित्तल की इकलौती संतान जो था। पापा अमर से भी ज्यादा मां अनीता का दुलारा था समीर।
समीर के बोलने से पहले लाड़ले की हर ख्वाहिश पूर्ण हो यह अनीता चाहती थी। वह अक्सर अमर से कहती थी – “यदि हमारे लाड़ले को अपने शौक व पसंद को पूरा करने के लिए समय का इंतजार करना पड़े
तो लानत है हमारे वैभव, धन संपदा व हमारी दौलत पर। ”
कंपनी के सेक्रेट्री गुप्ता जी को अमर व अनीता की तरफ से सख्त हिदायत थी कि वे उनके जिगर के टुकड़े को उसकी फरमाईश पर जितना वह चाहे उतनी मनी बिना कोई सवाल किए चुपचाप मुहैया कराए। और उनका सेक्रेट्री समीर की डिमांड पूरी करने हेतु मूक रह कर मुहमांगी रकम समीर के हाथों में सौंपता रहा।
कहावत सही है कि अति हर चीज की बुरी होती है। समीर अपनी इस सुविधा का नाजायज लाभ लेने लगा। इससे भी अधिक फायदा समीर के दोस्त उठाने लगे। वे उसके पैसे से मौज करते व गलत शौक पूरे करते।एक दिन गुप्ता जी ने उसे चरस हेरोइन की सप्लाई लेते देखा। यह बात उसने अमर व अनीता को बतानी चाही तो अनीता ने कहा – “मैं अपने बेटे को आपसे ज्यादा जानती हूँ। आप से जितना कहा गया है उतना ही करें। अपनी अक्ल लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है।”
अनीता एक धनवान की पत्नी थी और रात दिन पार्टीज व समारोहों में व्यस्त रहती थीं।संतान के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन उसकी तरफ से बच्चे की गवर्नेंस करती रहीं।मां के पास कभी भी इतना वक्त नहीं रहा कि वह बच्चे की घर व स्कूल की गतिविधियों पर गौर करे। और न वह इसे जरूरी समझती थीं।
धीरे-धीरे गलत दोस्तों की संगत ने समीर को नशे का गुलाम बना दिया। आज नगर के अरबपति व्यवसायी का इकलौता लाड़ला पूरी तरह नशीली ड्रग्स की गिरफ्त में है और नशे का गुलाम बन चुका है। वह मानसिक रूप से विक्षिप्त-सा हो गया है। नशा उस पर हुकूमत करता है और वह नशे का दास बन कर रह गया है। माता-पिता अब पछता रहे हैं और अच्छे से अच्छा इलाज कर वे अपने लाड़ले को अब नशे की गुलामी से मुक्ति दिला कर अपनी बड़ी भूल सुधारना चाहते हैं।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©