गुलामी
हो गये आजाद हम
पर जरा सोचिये
कि सोच से हम आजाद है
नहीं , क्योंकि सोचना पड़ता है
समाज को प्रतिमान मानकर
अपने आप को एक आदर्श
सामाजिक व्यवस्था में रख कर
इसलिये हम गुलाम है
वो बंधन नहीं टूटे अब तक
जो टूट जाने चाहिए
संकीर्णता की दीवारों में
जाति पांति की सीमाओं में बँधे
आज भी राम रहीम में भेद करते
स्व के लिए पर वजूद को मिटाते
नहीं सोचते हम एक होकर
इसलिये हम गुलाम है