” गुलाब “
हाइकु
कांटों में पला ,
बिखेरी गन्ध ऐसी ,
मन को छुआ !!
प्यारी रंगत ,
अनूठी है निराली ,
बांधे है सदा !!
खिलखिलाये ,
चमन , माली , हम ,
है आकर्षण !!
बिखरकर ,
टूट कर , महको ,
कहना रहा !!
शीश देवों का ,
गलहार औ वेणी ,
मरघट भी !!
शुरू से अंत ,
सभी के काम आना ,
खुशियां रही !!
बृज व्यास