गुलाब
हरे भरे पौधों में तनकर
रोज सुबह खिलता गुलाब
मन्द पवन के छू जाने से
शनैः शनैः हिलता गुलाब
अपनी रक्तिम अभाओं से
काले भौंरे का आकर्षण
खुशबू के माधुर्य मोद से
पीड़ाओं का हुआ विकर्षण
निर्मम काँटों में मुस्काता
मुझे सदा मिलता गुलाब
मन्द पवन के छू जाने से
शनैः शनैः हिलता गुलाब
पीली तितली मँडराती है
जाने अंदर कौन है ?
ले पराग मुँह बंद किये है
इसीलिए तो मौन है
अरमानो के होठों को
मधुरस से सिलता गुलाब
मन्द पवन के छू जाने से
शनैः शनैः हिलता गुलाब