गुलाब-एक आवाज
मैं कैसे लगा दूं तेरे बालों में,
“गुलाब” को लाकर के सागर ।
किसी को तवाह कर के कभी,
अपना घर सजाया नहीं मैंने ।।
वता कैसे ले आऊं में तोड़कर,
किसी डाली से उस गुलाब को ।
क्योंकि किसी की दुनिया उजाड़,
अपना घर बसाया नहीं मैंने ।।
तुझे ला के दूं वो हसी फूल मैं ,
तो तू वेशक मुस्करायेगी ।
पर किसी के दर्द को अपने दिल ,
का सुकून बनाया नहीं मैंने ।।
झांक कर देखो कांटो की आंखो ,
में जिनसे छीनू उनका हमसफर ।
किसी को अपनो से जुदा कर ,
किसी को अपना बनाया नहीं मैंने ।।
उसके भी अपने हैं और घर है,
तुम उसे रहने दो वहीं पर ।
किसी को बदनाम कर के अपने ,
नाम को बनाया नहीं मैंने ।।
मैं तुझसे वेइंतहा मोहब्बत करता,
हूं तू एतबार तो कर सही ।
इश्क़ में फूलों को इश्क का ही,
कभी व्यापार बनाया नहीं मैने ।।
खुदा जिसे नवाजा उसी के ,
कत्लेआम से कैसे खुश है ।
दर पे इवादत की दुआ मांगी ,
पर फूल चड़ाया नहीं मैंने।।
वेखॉफ शायर :-
राहुल कुमार सागर
“बदायूंनी”