गुलाबी रुखसार का
** गुलाबी रंग रुखसार का (ग़ज़ल) **
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गुलाबी रंग रुखसार का कातिल बहुत,
रिझाना चाँद सी नार का कातिल बहुत।
कभी तूफान भी छोड़ता मज़लूम को,
लुभाना है किसी जार का कातिल बहुत।
विरह में यातना ही मिले माशूक़ को,
सुहाना काल है प्यार का कातिल बहुत।
खिले होते सुमन बाग में मन मोहते,
खिलाना फूल कजनार का कातिल बहुत।
दगाबाजी सदा यार की है मारती,
बताना राज होता यार का कातिल बहुत।
दवाई से मिले राहतें हर शख्स को,
दवाखाना खुला मार का कातिल बहुत।
नशा छाया रहे मद्य का सुध बुध नहीं,
सुरा पीना सदा बीमार का कातिल बहुत।
रहे है घूमता बाग मनसीरत सभी,
दिखाना दृश्य गुलजार का कातिल बहुत।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)