!! गुलशन के गुल !!
तिरंगे फिज़ा में लहराने लगे
देख गुलशन के गुल मुस्कुराने लगे
मुस्कुराने लगे
मुस्कुराने लगे
देख गुलशन के गुल मुस्कुराने लगे
ज़ुल्म गोरों का सदियों तक सहते रहे
तीर शब्दों के हृदय को छलते रहे
दर्द उठते रहे, अश्क़ गिरते रहे
गिरते अश्क़ो को जब वो उठाने लगे
देख गुलशन………………………….
ग़ुलाम हम थे, वो हमको डराते रहे
ज़ुल्म के दायरे को बढ़ाते रहे
ज़ुल्म सहनें की जब इन्तेहा हो गई
लम्हें खुशियों के वो पास लाने लगे
देख गुलशन…………………………..
तराना आज़ादी वो गाते रहे
हौसला साथियों का बढ़ाते रहे
ज़ंग लड़ते रहे, आगे बढ़ते रहे
लहू गोरों का जब वो बहाने लगे
देख गुलशन…………………………..
ज़ंग -ए-आज़ादी में सर कटाते रहे
अर्थी अरमानों की हम उठाते रहे
देश अपना था पर वो सताते रहे
देश को छोड़कर जब वो जाने लगे
देख गुलशन……………………………..
हम कसीदे शहीदों के पढ़ने लगे
“चुन्नू” आज़ादी के गीत गढ़ने लगे
आंसू आंखों में खुशियों के आने लगे
लोग ज़श्न -ए-आज़ादी मनाने लगे
देख गुलशन……………………………….
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)