गुलमोहर
जब तुम यौवन पर होते हो,
सारा जग भी खिल जाता है।
तुम्हारा ऐसा दर्श देखकर तो,
युवती यौवन भी शर्मा जाता है।।
जेष्ठ आषाढ़ की तेज गर्मी में,
तुम सदैव मुस्कराते रहते हो।
कठिन पथ पर चलकर भी,
तुम आगे ही बढ़ते जाते हो।।
तुम जीवन के गुल ही नहीं हो,
हर तरह की मोहर भी हो।
अपनी अमिट छाप देकर,
तुम जीवन पर छोड़ जाते हो।।
देखकर तुम्हारे सुर्ख रंग को,
अवनि अम्बर सज जाते है।
मानव तो क्या पशु पक्षी भी,
देखकर तुम्हे खुश हो जाते है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम