गुलमोहर
सडक के उस पार
गली के छोर पर
हुआ करते थे
दो गुलमोहर …
बडे़ मनोहर लगते थे मुझे
जब लद जाया करते थे
फूलों से …..
एक केसरी
और दूसरा पीला
मेरे मन को बहुत भाते थे
खिडकी से बस दूर से निहारा करती
वृक्षों के नीचे खिरे हुए फूलों की
चादर सी बिछ जाती थी जब
मानो हो मखमली कालीन
मन करता था जाकर
पग फैलाकर
कर लूँ क्षण आराम ..।
पर अब वो नहीं हैं
काट डाला
कुछ इंसानों ने मिलकर
नहीं दिखता वो
मखमली कालीन
क्योंकि वहाँ तो
तिमंजिला मकान बन गया है …।
शुभा मेहता
9th May ,2019