गुरू
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गुरू बिना जगत में बने ना कोऊ काज।
गुरू ज्ञान कृपा से करो जगत में राज।।
अज्ञान अंधियारा दूर कर, भरे ज्ञान भण्डार।
दिव्य ज्ञान रोशन करें,गुरु,कृपा से संसार।।
अंधकार को दूर कर, भरें ज्ञान प्रकाश।
ज्ञान के सागर से जन बने लोक आकाश ।।
राह दिखाते हैं गुरूवर,सदा करें कल्याण।
ग्रंथ सारे भरे हुए ,गीता हो या रामायण।।
भटक जाए जब कभी पथ इंसान।
तब गुरूवर ही देते सदा परमज्ञान।।
मां -पिता तुल्य कोई गुरू नहीं
जिसमें जीवन सार।
माता -पिता ही पहनाएं,तुम्हें,
संस्कार फूलों का हार।।
सुषमा सिंह *उर्मि,,