गुरू
गुरु मार्गदर्शक है राह नई दिखलाता है
गुरु से है नव निर्माण ,एक पथपदर्शक भी बन जाता है
जलकर स्वयं दीप सा ओरो को
रोशन कर जाता है
गुरु के है कितने रूप मां भाई
शिक्षक कहलाता है
हर कोई जो कुछ न कुछ सिखलाता
है वही गुरु कहलाता है
गुरु की महिमा है निराली
वही तो जीवन दे जाता है
भांति कुम्हार की अंदर सहलाता
बाहर से चोट दे जाता है
तभी तो सुदर साकार घड़ा बन पाता है
बचपन मे सीखी गिनती से ही तो
कोई हिसाब लगाता है
दिखाने नई दिशा एक नीव रख जाता है
रखकर आधारशिला भविष्य सुनहरे बनाता है
तभी तो शिक्षक राष्ट्र निर्माता कहलाता है।।
“कविता चौहान”