गुरू गोविंद
मित्रों सादर समर्पित है ,आल्हा।
गुरू गोविंद बडे़ लडै़या,संहारा मुगलों का ताज।
दोनों पूतों की बलि देदी, ऋणी हो गया हिन्द समाज।
हर हर महादेव के नारे,गूंज रहे थे तीनों लोक।
अट्टहास करती मां काली, चम चम शोणित का आलोक।
बलिवेदी पर दोनों प्यारे, हँसते हँसते हो बलिदान।
धरती कांपी जंगम रोया, रोया था तब हिन्दुस्तान।
इन वीरों की अमर कहानी, जब जब लिक्खेगा इतिहास।
खूनी अक्षर खुद लिक्खेगें, शाही वह निर्मम उपहास।
जिंदा पूतों को चुनवाया,मनमानी की एक मिसाल।
वीर सपूतों ने बलि देदी, इस्लाम को छोड़ बेहाल।
वीरता की ये पराकाष्ठा, भारत माँ का ऊँचा भाल।
ऐसे वीरों के घर जन्मे, वे गुरू गोविंद के लाल।
पंचम प्यारे वीर अनोखे, अर्पित किया गुरू को शीश।
रण में लड़ते जैसे योद्धा,गुरुओं का लेकर आशीष।
कर में खड्ग फड़कती जैसे,चपला चमके अरि के पास।
छिन्न भिन्न होकर के शीशें,जैसे गिरें धरा पर वास।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम।