गुरूर
गुरूर न कर ऐ मगरूर नादान,
हमने सूरज को ढलते देखा है।
स्याह रात गहरी हो कितनी भी,
हमने जुगूनियों को मचलते देखा है।
अभी तो हम जिंदा हैं ‘विकल’,
हमने लाशों को भी चलते देखा है।।
© खूब सिंह ‘विकल’ 30/08/2018
गुरूर न कर ऐ मगरूर नादान,
हमने सूरज को ढलते देखा है।
स्याह रात गहरी हो कितनी भी,
हमने जुगूनियों को मचलते देखा है।
अभी तो हम जिंदा हैं ‘विकल’,
हमने लाशों को भी चलते देखा है।।
© खूब सिंह ‘विकल’ 30/08/2018